Friday, November 2, 2012
बुतों में बुद्ध को ढूँढ रही हूँ
बुतों में बुद्ध को ढूँढ़ रही हूँ
कहीं पीतल का बुद्ध
कहीं सोने का बुद्ध
तो कहीं पत्थर का बुद्ध
हर जगह
एक पहाड़ की तरह
खामोश बुद्ध
और मैं ढूँढ रही हूँ
ऐसे बुद्ध को
जो मुझसे बातें करें
जो मेरी नादानी पर हँसे
जो मेरी गलतियों पर गुस्सा करें
जो मेरे नाटक का हिस्सा बने
जो मेरे साथ खेले
जो मेरे साथ रोए
पर हर जगह मिलता है मुझे
एक मौन बुद्ध
अलग - अलग परिभाषाओं में
परिभाषित बुद्ध
कहीं गुरु , तो कहीं भगवान ,
कहीं लोगों की आकांक्षाओं के बोझ तले
दबा हुआ बुद्ध
तो कहीं भौतिकता का प्रतीक बनता
जा रहा बुद्ध
कहाँ है वो शांत , सौम्य, मुस्कुराता बुद्ध
कहाँ है वो बुद्ध
जिसकी छवि सदियों से
इन पहाड़ों के ज़ेहन में है
कहाँ है वो बुद्ध
जिसे मैं बचपन से सुनती आ रही हूँ
चाँद मेरे सवालों पर हँसता है
हवाएं मुझे छूकर गुज़र जाती हैं
और दूर कहीं
पहाड़ की ख़ामोशी को तोडती
नदी का शोर सुनाई दे रहा है
और मैं बुतों में बुद्ध को ढूँढ रही हूँ
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