Tuesday, January 18, 2011

खोगल *हाल्डा *

हिमाचल कि वादियों में बसा एक जनजातीय जिला लाहौल एवं स्पित्ति .लाहौल स्पीति को शीत मरूस्थल के नाम से भी जाना जाता है . इस शीत मरूस्थल में आज कल त्योहारों का दौर शुरू हो चुका है . मकर संक्रांति को हमारे यहाँ *उतना * के रूप में मनाया जाता है .इसे नव बर्ष के आगमन का त्यौहार भी कहा जा सकता है . इस त्यौहार के बाद मंदिर के कपाट बंद कर लिए जाते हैं और चेत्र महीने के शुरू होने पर ही खोला जाता है जिसे स्थानीय बोली में *चेत्रोडी* भी कहा जाता है .
*उतना * के बाद के पहले पूर्णिमा को हाल्डा यानी *खोगल * मनाया जाता है .इस त्यौहार के दिन बिषेश्त्या अपने पित्तरों को याद किया जाता है और उन्हें भोग आदि चढाया जाता है .यह त्यौहार दो दिन चलता है . पहले दिन अपने कुलदेवता कि पूजा करने के बाद दिन के समय जुनिपर यानी *सरू* के पेड कि लकड़ी को काट कर इसके छोटे छोटे गट्ठे बनाए जाते हैं जिन्हें *हल्ला * कहा जाता है .देवदार के पेड को हमारे यहाँ सबसे पवित्र माना जाता है .
अगले दिन सुबह तडके घर के पुरुष या महिला सदस्य घर कि छत में अपने पित्तरों को भोग चढाते हैं .फिर अपने कुल देवता कि पूजा के बाद त्यौहार कि शुरुआत होता है . अलग अलग किस्म के पकवान बनाए जाते है जैसे *मन्ना * या *एट* आदि . इस दिन घर कि जो बेटियां दूसरे गाँव या उसी गाँव में व्याही होती है उन्हें भेजने के लिए *मारचु* यानी पूरी भी बनाए जाते हैं .इसे बेटी के घर के पहुंचाने के लिए त्यौहार के अगले दिन घर का कोई सदस्य अपनी बेटी के घर जाता है .आटे के दीये भी बना कर रखे जाते हैं .





इसदिन शाम के समय घर में बने सभी पकवानों को थोडा थोडा करके पित्तरों को चढाने के लिए तैयार रखा जाता है .शाम को घर कि महिला या पुरुष सदस्य *सरू * के तनों के बने गट्ठों यानी *हल्ला * को जलाते हैं और पित्तरों को चढ़ाये जाने वाले भोग को टोकरी में डाल कर शमशान कि तरफ जाते हैं पहला दीया उस जगह जलाया जाता है जहाँ मृत शरीर को नहलाए पानी को फैंका जाता है , गाँव के हर घर से यह भोग जाता है . फिर शमशान से थोड़ी दूरी पर दुसरा दीया जलाया जाता है और यहाँ पर सारे गाँव वाले उन जुनिपर के गट्ठो को एकत्रित कर के जलाते हैं और सभी अपने अपने पित्तरों के लिए लाये भोग को उस आग में चढाते हैं और उसे पित्तरों को अर्पित करते हैं .
रात का समय करीबन १० या ११ बजे घर के पुरुष सदस्य एक बार फिर *हल्ला * यानी उन गट्ठों को जला कर पहले देवताओं को चढाते है . और एक निश्चित स्थान पर ले जा कर उसे वहाँ एकत्रित करके जलाते हैं .. और एक उसके बार बुरी आत्माओं को घर से दूर रखने के लिए जलाया जाता है .
इस तरह से यह त्यौहार खत्म हो जाता है .वैसे तो मैने अपनी तरफ से पूरी कोशिश कि है कि हाल्डा के बारे में कोई भी छूटे ना पर इस त्यौहार को अलग अलग हिस्से में अलग तरीके से मनाया जाता है .अगर लाहौल के किसी बंधू के पास ओर जानकारी हैं इस बारे में तो शेयर कर सकते हैं .
हाल्डा के बाद के पहले अमावस्या को सबसे बड़ा त्यौहार *कुंह * यानि *फागली * मनाया जाता है . उसके बारे में फिर कभी