Tuesday, January 24, 2012

शून्य में पलती एक जिंदगी (अरुणा -एक एहसास )

जब एक बीज
खिलता है कली बनकर
वो कारण बनती है
एक कोमल सी मुस्कान का
कुछ यूं ही तुम भी खिली थी
अपने घर आँगन की बगिया में
मौसम के साथ अठखेलियाँ खेलती
जब तुम एक कली से
हरी भरी पेड बन गयी थी
तब तुम्हारे सपने भी
तुम्हारे मन के भीतर तक
एक मजबूत जड़ की तरह फ़ैल चुके थे
सपनों की उड़ान उडती तुम
होंसलों के पंख लगाकर
एक ऐसी दुनिया में पहुँच गयी
जहाँ वक्त के पास भी फुर्सत नहीं होती है
की वो पलों से साथ समय बिताए
जहाँ साँसे इतनी तेज चलती है
मानो कुछ ही पल में सब खतम हो जाए
अपनी उसी दुनिया में जीती तुम
मुस्कान बिखेरती तुम
ना जाने कितनों की सांसों को जीवन देती रही
पर उस एक पल में
थम सी गयी तुम
जब तेरे सपनो के पंख को
जंजीर से बांध लिया गया
तुम्हारी मुस्कान
नोच ली गई ,
तुम्हारे सपने ,
तुम्हारा जीवन,
एक बिंदु पे स्थिर हो गया
जहाँ सपने अभी भी है
पर पंख कुतर दिए गए हैं
जहाँ आशा , निराशा सब है
पर जीवन होकर भी नहीं है
शून्य में ताकती तुम
उस शून्य से अपना हिसाब मांग रही हो
एक नदी की तरह तुम निरंतर बह रही हो
मेरे लिए तुम एक चित्र लिपि हो
जिसे मैं पढ़ना चाहती हूँ
अपने एहसासों को
तेरे एहसास से मिला कर
तुम्हारे अंदर
एक जीवन सृजित करना चाहती हूँ
ताकि तुम्हारे चहरे की मुस्कान
मेरे शब्दों को जिंदा कर दें