Saturday, September 27, 2014

चंद्रताल की यात्रा





            यात्राएं जीवन की आवश्यकता है | हम अनंत काल से यात्राएं ही करते आये हैं |यात्राएं हमें जीवन के ओर करीब ले जाती हैं | एक ऐसी ही यात्रा पर हमें निकलना था| चंद्रताल जाने की इच्छा मेरे मन में कई वर्षों से थी | हम हर साल जाने की योजनायें बनाते और वो किसी सरकारी योजना की तरह फ़ैल हो जाती | कुछ मिलन कुछ यात्राएं हमारे बस में नहीं होती | कुछ लम्हों के लिए ,कुछ अनछुए पलों के लिए वक्त ने पहले से ही
 घोंसला बना लिया होता है | ऐसे ही किसी एक दिन मैं अपना बैग पैक कर रही थी |  अगले दिन सुबह 7 बजे के करीब मैं अपने ग्रुप के साथ कुल्लू से मनाली जा रही थी | पूनम ( मेरी दोस्त ) जो पेशे से लेक्चरर हैं  , विशाल भैया ( पूनम के कज़न) जो दूर संचार विभाग में एकाउंटेंट की पोस्ट पर हैं   और उनकी पत्नी  सुषमा  जो केन्द्रीय विद्यालय में लेक्चरर हैं |हम सब  विशाल भैया की गाडी में बैठ कर हँसते –हंसाते मनाली के प्रीणी गाँव की ओर जा रहे थे जहाँ से हमें विकास भैया और उनकी पत्नी टशी की सोकोर्पियो से आगे जाना था | विकास भैया और तशी का अपना बिसनेस है जो एक ट्रैकिंग ग्रुप चलाते हैं | यह हामटा में भी अपनी दूकान चलाते हैं | सुबह के करीब नौ बजे हम प्रीणी गाँव से अपनी आगे की यात्रा पर निकले | पहला पड़ाव कोठी रहा जहाँ हमने नाश्ता किया | विकास भैया और उनकी पत्नी से पहली बार मिल रही थी पर लग नहीं रहा था कि हम पहली बार मिले | नाश्ता करने के बाद सबने एक ग्रुप फोटो लिया और फिर अपनी यात्रा शुरू की | रोहतांग पहुँच कर हम सब फोटोग्राफी के लिए  रुक गए | कितना अजीब सा लगता है ना | इस रोहतांग से मैं ना जाने पहले भी कितनी बार गुज़री | जब पहली बार जमा दो पास कर के कुल्लू आयी थी तब से इसे देख रही हूँ महसूसने की कोशिश कर रही हूँ | उसमे भी उतने ही बदलाव आये हैं जितने मुझमे | रोहतांग पार जाते हुए ऐसा लग रहा था कि हम अपने घर जा रहे हैं | गाडी में एक गाना खूब बज रहा था “ बदतमीज़ दिल माने ना”  और हम सब भी साथ –साथ इस गाने को जोर जोर से इन पहाड़ों को सूना रहे थे | पहली बार ग्राम्फु से स्पीती वाले रास्ते पर जा रही थी | एक नयी अनुभूति लिए नए आकाश की तलाश में | ऐसा लग रहा था पूरी प्रकृति को अपने अन्दर समा लूँ और निकल जाऊं उसके के साथ उस यात्रा पर जहाँ हम दो ही हो | कि मैं गाऊं और वो पहाड़ सुनें यह झरने नदी मेरे ताल के साथ ताल मिलायेऔर यह पेड़ पौधे और झाड़ियाँ मुझे जीने का सामान देते रहे | पर कुछ ख्वाब – ख्वाब ही रहते हैं | उनका हकीकत से कोई रिश्ता नहीं होता |
ग्राम्फु से थोडा सा आगे स्पिति की तरफ



ग्राम्फु से करीब चार या पांच किलोमीटर चलने के बाद हमें गदीयाँ मिलने शुरू हो गए | गद्दियाँ अप्रैल  ,मई के महीने में हिमाचल के निचले इलाकों जैसे कांगडा और चंबा से हिमालय की और आते हैं और अगस्त सितम्बर तक वापिर चले जाते हैं | उनका सफ़र वापसी का था |




इनकी यात्रा सबसे कठिन होती है ( गद्दियों के भेड -बकरी )
छतडू


ग्राम्फु से करीब 20 किलोमीटर दूर हमारा दूसरा पड़ाव आया “छतडू”  सरकार का एक बोर्ड बता रहा था कि वहां कुल 120 व्यक्ति रहते हैं | यहाँ हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग का एक रेस्ट हाउस भी है | छत्डू से हमारी यात्रा फिर शुरू हो गयी |बातल के लिए | रास्ते अजनबी पर जाने पहचाने से थे | रास्ते में गद्दियों के कई झुण्ड भी हमें मिले |  विकास भैया ने हमें सुम्ली ट्रेकिंग रूट और शिग्री ग्लेशियर के बारे में बताया  वो इस रूट से कई बार अपनी ट्रेकिंग यात्रा कर चुके हैं | उनके पहाड़ के हर रूप के बारे में पता है “
country roads take me home “  यह गाना कई बार उनके मुंह से सुन रही थी | उन्होंने इसी रास्ते पर हमें एक फूल दिखाया  और बताया कि यह switzerleand का राष्ट्रीय फूल है | रास्ता पूरा का पूरा कच्चा रास्ता है | विशवास नहीं होता कि यह रास्ता स्पिति के लोगों को बाकी दुनिया से जोड़ने वाला रास्ता है | ऐसा लगता है जैसे जब से सड़क बनी है इसके रखरखाव पर कोई काम नहीं हुआ है | chatduu से लगभग चार या पांच  घंटे के सफ़र के बाद हम लोग बातल पहुंचे  बातल एक छोटा सा स्थान है जहाँ कुछ दो तीन ढाबे और एक हिमाचल प्रदेश लोक निर्माण विभाग का एक रेस्ट हाउस भी है | यहाँ हम ने वीरता पुरूस्कार से सम्मानित हिशे और दोरजे के ढाबे में चाय और बिस्कुट खाई और फिर अपने मंजिल की और बढे |


हिशे जी , विशाल भैया, दोरजे जी ,, बातल में
चंद्रताल से कुछ दूर पहले
Private Tents 

शाम को चंद्रताल  कुछ यूँ मिला  



यहाँ से चंद्रताल  बस 14 किलोमीटर दूर था | कुछ दो या तीन किलोमीटर चलने के बाद कुंजाम  दर्रा  और चंद्रताल के रास्ते अलग हुए | बस कुछ ही पलों में हम बेस कैंप में थे जहाँ कुछ टेंट लगे हुए थे |
गाड़ियां बेस केम्प या यूं कहैं कि जहाँ निजी टेंट लगे हैं उससे थोड़ी ऊपर तक जाती है | जहाँ गाड़ियां पार्क होती हैं उस जगह से आगे टेंट लगाने की मनाही है | जबकि हमारा इरादा बिलकुकल झील के पास टेंट लगाने की थी |  पर्यटन विभाग वालों ने यहाँ एक चौकीदार रखा है जो लोगों को पार्किंग से आगे टेंट लगाने से रोकता है | हम लोग अब चंदर ताल से करीब 500  मीटर की ही दूरी पर थे | यहाँ ठण्ड काफी थी .. सब ने टोपियाँ मफलर और और जेकेट्स लगा लिए | और चंदर ताल से मिलने चल पड़े | चंदर ताल को पहली बार देखने का जोश कुछ ऐसे था जैसे एक छोटे बच्चे के मन में बरसों से दबी इच्छा का पूरा होना | और अगले ही पल चंदर ताल हमारे सामने था | कुछ पल के लिए लगा कि इस झील से मेरा नाता पुराना है | और मैं एक प्रेमी की तरह उसे अपने आगोश में बसा कर अपने रूह की अंतिम तलहटी पर बसाना चाहती थी | ऐसा लग रहा था कि यहाँ कोई ना हो बस मैं, झील और हमारे  ह्रदय में  बजने वाला संगीत हो | चन्द्र ताल रूबरू होने के बाद अब हमें टेंट के लिए जगह ढूँढनी थी उस दिन सर्कार ने जिस चौकीदार को निगरानी के लिए रखा था उस दिन वो नहीं था तो हमने झील से थोडा ऊपर अपना टेंट लगाया | टेंट लग चुका था | ठण्ड काफी बढ़ गयी थी हम सभी अपने अपने स्लीपिंग बेग में घुस गए | विकास भैया , और विशाल भैया ने पहले चाय और फिर डिनर करवाया | वहीँ पास ही गद्दियों का एक “ किचन “ भी था | हम अपने साथ खाना बनाने का सारा समान ले गए थे  जिसका पूरा इंतजाम विशाल भैया ने किया था |  सुबह पांच बजे के करीब मेरी नींद खुल गयी | सब सोये हुए थे .. तो मैं भी चुपचाप बैठी रही इतने में सुषमा भी जाग गयी फिर हम दोनों  घूमने निकल पढ़े .. चन्द्र ताल के पीछे की पहाडी की तरफ जहाँ से एक ओर सुन्दर सी जगह दिखती है जिसका नाम समुन्द्र ताल था .. चंद्रताल के पीछे दाहिनी तरफ को दो तीन छोटी छोटी और भी झीलें हैं | इतने में पूनम और tashi भाभी भी आ गए  हम सब बिना मुंह धोये बस घूम रहे थे गा रहे थे और खूब मस्ती कर रहे थे  जब सूरज की पहली किरणों ने चंद्रताल को छुआ उस झील की सुन्दरता और निखर गयी मानो युगों बाद प्रेमी के आने की खुशी में प्रेमिका  हरी भरी हो गयी हो | मैने एक -एक पल को अपने भीतर कैद किया ताकि कभी उन पलों के साथ दूर गगन में उड़ सकूँ जी सकूँ खुद को महसूस कर सकूँ अपने जिंदा होने का यकीं कर सकूँ |  चंद्रताल के साथ बैठ कर हमने ढेरों हिंदी फिल्मों के गाने गायें और हाथ मुंह धोकर अपने टेंट की ओर चल पड़े | विशाल भैया और विकास भैया ने हमारा नाश्ता तैयार रखा हुआ था |  कुछ देर बाद tashi भाभी ने चटपटा सा पुलाव भी बनाया | हमने थोड़ी देर sun bath  kका आनंद लिया और फिर दोपहर बाद  अपने अपने पिंजरों की ओर फिर से वापिस चल पड़े ..
  बेशक चंद्रताल पहुँचने का रास्ता बहुत खराब था / है | सरकार ने इस इलाके में शायद सड़कों की मरम्मत पर उतना ध्यान नहीं दिया पर पहली बार सरकार की इस अव्यवस्था पर खुश हुई हूँ क्योंकि सब कुछ अच्छा होता तो चंद्रताल वैसा ना होता जैसे आज है || खुश हूँ कि मेरे जीवन के सबसे सुन्दर यात्राओं में एक यात्रा थी यह जो मेरे प्यारे दोस्तों के कारण ही संभव हो पाया |

 नोट :- सभी लोग जो इस संस्मरण को पढेंगे उनसे मेरा अनुरोध रहेगा कि हम चाहे दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी प्राकृतिक जगह पर जाए .. उस जगह की सफाई का अवश्य ख्याल रखें | क्योंकि प्रकृति  की सुन्दरता ही हमारे सुन्दर जीवन का आधार हैं

विशाल सुषमा 



विकास टशी
हमारा टेंट