Wednesday, May 25, 2011

रूपी रानी (थोपा गया अमरत्व )

वो गाँव की मिटटी/खेत और गलियां ,
जहाँ अठखेलियाँ करते ,
बिताया होगा तुमने अपना बचपन ,
हर दीवार ,हर पेड,हर शय से ,
एक रिश्ते से बंधी तुम,जब ,
अविरल बहते आंसुओं की धार के साथ ,
जब विदा हुई होगी अपने पीहर से ,
तुमने महसूस तो किया होगा
खामोश प्रकृति के आंसुओं की धार को भी ,
कितने अरमानों से रखा होगा कदम तुमने ,
उस जाने से मगर अनजाने गाँव/घर में,
जो बनने वाला था मूक गवाह,
तुम्हारे खिलाफ होने वाली नाइंसाफी का,
यहाँ की मिट्टी/ खेत /गलियाँ ,
कभी तुम्हे पराय ना लगे होंगे ,
जाने अंधविश्वास की वो कैसी प्रथा रही होगी,
जहाँ एक तिनके से लेकर एक पहाड़ तक
सब का कोई ना कोई अपना था
पर एक तुम ही थी जो पराई थी
तभी तो प्रकृति के कहर पर,
अपने आदिम कुनबे को बचाने के लिए,
तुम्हारी बलि चढ़ा दी गई ,
कोशिश तुमने भी की होगी ,
खुद को बचाने की ,
उस रुढिवादी सोच से ,
देखा होगा निरीह भाव से ,
गाँव की उन बेजान गलियों को ,
जो तेरी बलि का जश्न मना रहे थे ,
पुकारा होगा हर पेड /पत्तों को,
जो अकाल पीड़ित हो पहले ही मुरझा चुके थे ,
तुम्हारा विरोध टूट गया होगा ,
एक सूखे तिनके सा
तभी तुम बच ना सकी ,
खुद पर थोपे गए ,
अमरत्व के श्राफ से .


(यह कविता एक लोक गीत और सत्य घटना पर आधारित है .रूपी रानी लाहौल के गोशाल गाँव के राणा की पत्नी थी .एक साल गाँव में अकाल पड़ा तो गाँव वालों ने किसी जानकार (पंडित ) से संपर्क किया तो उसने कहा की किसी इंसान की बलि देनी पढेगी .तो रूपी रानी जो किसी दूसरे गाँव से व्याह कर के इस गाँव आई थी और यहाँ के राजा (यानी राणा ) की पत्नी थी तो उनकी बलि चढ़ा दी गयी .)

1 comment:

  1. सुन्दर कवितायें बधाई और शुभकामनायें

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