Sunday, April 30, 2017

ग़ज़ल

 इश्क –ए –हकीकी की और क्या मिसाल दूँ ,
 मैंने अपनी रूह में एक गाँव बसा रखा है |

 
 पी लेते हैं ज़रा ज़रा सा एक दूसरे को हम ,
 जी लेते हैं यूँ ही कभी एक दूसरे में हम |
 
अजब इस दुनिया की हकीकत है दोस्तो 

यहां हर चेहरे में रहते कई चेहरे हैं दोस्तों 

हम इस दुनिया को रूहानी बातें सिखाते रहे ,
और दुनिया हमारे रूह को बेचकर हंसती रही |
 
 अजब बेवकूफ निकले तुम भी हम भी दोस्त ,
 मुर्दों के शहर में जिंदगी की बात करते रहे |

 गम- ए –दौर  सिखा गया हमेे जिंदगी के मायने